रोजगार की दरकार

सभी वर्गों के युवा ज्यादा से ज्यादा पड़ रहे हैं लेकिन नौकरियों की कमी है ऐसे में गांवों में परंपरागत और पैतृक व्यवसाय ओ का खत्म होते जाना चिंता की बात है मोची धोबी माली बढ़ाई कुम्हार बगैरा के काम अब कोई नहीं कर रहा तो ऐसा भाविक बात है क्योंकि समाज इन के व्यवसाय को प्रतिष्ठान स्थान नहीं दे रहा दूसरे ऊपर जैसे मैंने कहा अंधाधुंध मशीनीकरण की मार भी इन व्यवसायियों पर भारी पड़ रही है मिसाल जूते चप्पलों की ले तो हर कोई यह जानकर हैरान रह जाता है कि मोतियों की दुकानें अब पहले की तरह हर कहीं नहीं दिखती अब हर कोई महंगे व ब्रांडेड जूते चप्पल पहन रहा है जो सालों साल नहीं टूटते और जब टूट जाते हैं तो उन्हें फेंक दिया जाता है यही बात कपड़ों और बर्तनों पर भी लागू होती है साफ है कि गांव देहातों के युवा शिक्षित होकर दोहरी मार झेल रहे हैं स्किल डेवलपमेंट जैसी योजनाएं इसी वजह से नहीं चल पा रही हैं कि पढ़े-लिखे युवाओं को परंपरागत व्यवसाय में अब कोई संभावना नहीं दिखती क्या आरक्षण का बेरोजगारी से कोई संबंध है? बिल्कुल नहीं है वजह आरक्षण से यह तय नहीं होता कि कितनी नौकरियां आएंगी बल्कि यह तय होता है कि जो नौकरियां है वह कैसे पटेगी दरअसल आरक्षण जातिगत भेदभाव मिटाने के लिए बनाया गया था जो खुशी की बात है कि कम से कम शहरी इलाकों में तो कम हो रहा है हालात अब 70 साल पहले जैसे नहीं रह गए हैं इसलिए इस गंभीर और संवेदनशील मुद्दे पर दोबारा नए सिरे से सोचे जाने की वकालत में करता हूं और यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि बेरोजगारी की मूल समस्या से इसका कोई लेना-देना नहीं है बेरोजगारी पर मीडिया की भूमिका पर क्या कहेंगे? एनडीए सरकार के चुनाव में जीतने की एक बड़ी वजह युवा बेरोजगार थे


एक करोड़ नौकरियां हर साल देने का वादा किया तो नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री तो बन गए लेकिन उन्होंने वादा नहीं निभाया नतीजा अब बेरोजगारी चरम पर है युवाओं का गुस्सा फूट रहा है देश में कितनी नौकरियां पैदा होंगी यह सरकार की नीतियों से तय होता है कहने को तो हम मिश्रित अर्थव्यवस्था में रहते हैं लेकिन सरकारी नीतियां पूंजीपतियों के हिसाब से बनती हैं नीतियां ऐसे हैं जिन से एक व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ की जगह अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मिले


रोजगार कार्यालय पिछले कई सालों से प्रभावी तरीके से काम नहीं कर रहे हैं लेकिन उन्हें दुरुस्त करने के बजाय सरकार उन्हें निजी हाथों में देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रही है पुणे की यशस्वी नाम की एक संस्था का उदाहरण में यहां देना चाहूंगा जिसे 100000 नौकरियां देने का जिम्मा सौंपा गया है इस कंपनी को क्वालिटी फाइंड कार्ड के नाम पर ₹190000000 दिए जाएंगे लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि अगर वह एक लाख नौकरियां नहीं दे पाई तो उस पर क्या एक्शन लिया जाएगा यह कैसा निजीकरण है जिसमें कंपनी काम करे ना करे उसे भुगतान किया ही जाएगा मध्य प्रदेश की बात करें तो बामन रोजगार कार्यालयों की जगह कंपनी केवल 15 स्थानों पर ही अपने सेंटर को लेगी इससे छोटे जिलों में बहुत समस्या आएगी इसका मतलब बेरोजगार युवा दोबारा भाजपा को मौका या वोट नहीं देंगे? आप बताइए क्यों दें हम ऐसी सरकारों को वोट जो युवाओं को रोजगार नहीं दे पा रही हैं बेरोजगार सेना देश प्रदेश में व्याप्त बेरोजगारी का समाधान ढूंढ रही है हमें कांग्रेस से भी खास उम्मीद नहीं है और ना ही दूसरे किसी राजनीतिक दल से रखते हैं पर विरोध जताने के लिए बेरोजगार और क्या करें दरअसल राजनीतिक स्तर पर देश की असली विपक्ष संसद या विधानसभा में नहीं बल्कि सड़कों पर आंदोलन युवा हैं बेरोजगार दूध के जले हैं अबे छाछ भी फूंक-फूंक कर पिएंगे और किसी राजनीतिक झांसे में नहीं आने वाले हम राजनीतिक विकल्प की तलाश में है और उम्मीद है कि जल्द उसे ढूंढ लेंगे स्वरोजगार के लिए बेरोजगार युवाओं को आसानी से कर्ज मिल रहे हैं? बिल्कुल नहीं आसानी से तो क्या कठिनाई से भी नहीं मिल रहा स्वरोजगार की सभी योजनाएं मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना मंत्री युवा उद्यमी योजना और बेंच कैपिटल लिस्ट यह सब केवल नाम और झूठे प्रचार के लिए हैं आंकड़े बाजी के लिए हैं कई योजनाएं के लिए सरकार ने घोषणा की है कि बैंक लोन के लिए गारंटी की जरूरत नहीं है|